न मंदिरों की घंटियों का
न मस्जिदों के आगाज का
न गिरजाघरों के प्रकाश का
न सोंच के तलवार का
ये प्रश्न है निराकार का
मन है विचित्र सा
खोजता पवित्र सा
न भूखों के आहार का
न शक्ति के प्रहार का
ये प्रश्न है निराकार का
न मन के भ्रम का
न शरीर के श्रम का
न धर्म के प्रचार का
न असत्य के संघार का
ये प्रश्न है निराकार का
न बालक के अबोध का
न अनुभव के प्रबोध का
न अशुद्ध आचार का
न शुद्ध विचार का
ये प्रश्न है निराकार का
सुलग रहा मन है
पूछता प्रश्न है
न जिंदगी के आधार का
न शून्य से साक्षात्कार का
ये प्रश्न है निराकार का
मन की गहराईओं का
दिल की अच्छाईओं का
आत्मा के एहसास का
परमात्मा के प्यास का
पृथ्वी के आधार का
व्योम के विस्तार का
बदलते मौसम का
ढलती रातों का
उगते उजालों का
नीर के प्रपात का
होठों के चाहत का
है संकुचित मेरी लेखनी
और ये प्रश्न निराधार है|
फिर भी मन में हाहाकार है,
इस निराकार का क्या आकार है||
न आकार का न प्रकार का
ये उत्तर है निराकार का
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1 comment:
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