यह मन का भ्रम है या
मानसिक अपरिपक्वता की निशानी है |
की जो गुजर गया, जो भूत है,
वो बार बार बेताल का रूप लेकर
भविष्य के लिए कर देता परेशानी है ||
अतित से सीख लेकर वर्तमान में, भविष्य के लिए,
नए आयाम ढूँढने चाहिए ||
न की भविष्य को,
अतित के चक्कर में ही डुबो देना चाहिए ||
काल चक्र तो निरंतर आगे बढ़ता है,
तो फिर क्यों नूतन को सँवारने के बजाए,
हरेक मसले पर भूत
सामने खड़ा हो जाता है ||
मैं यह नहीं कहता की अतित के अंतर्त्द्वंद,
मन को विचलित नहीं करते हैं |
मगर पश्च दृष्टि के तुलना में विद्वान जन,
दूर दृष्टि से नजर नहीं हटाते हैं ||
यह सही है की गुजरे हुआ पल को समझ कर,
आने वाले पल का स्वागत करना चाहिए |
पर गुजरे हुआ पल को हमेशा पकड़ कर,
आने वाले सच्चे पलों से मुंह नहीं फेरना चाहिए ||
बर्बाद हुए चमन पे ही तो,
फिर से बहार आती है |
जैसे हर रात का सीना चिर कर,
सवेरा फिर से जीने का एहसास दिलाती है ||
यह बेजान सि, मरी हुई अतित,
जो बारम्बार हमारे पीठ पर बेताल सरीखे बैठती है |
यह देखना है की कब कोई विक्रमादित्य की तलवार बेताल को काटकर,
भविष्य को देखने की सही दिशा दिखाती है ||
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